Mareez-E-Mohabbat Unhi Ka Fasana / मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना Lyrics in Hindi
मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना सुनाता रहा दम निकलते निकलते मगर ज़िक्र-ए-शाम-ए-अलम जब के आया चिराग-ए-सहर बुझ गया जलते जलते इरादा था तर्क-ए-मोहब्बत का लेकिन फरेब-ए-तबस्सुम में फिर आ गए हम अभी खा के ठोकर संभलने न पाए कि फिर खाई ठोकर संभलते संभलते उन्हें खत में लिखा था दिल मुज़्तरिब है जवाब उन का आया … Read more